
गीता के 50 प्रेरक उपदेश
1. कर्म करो, फल की इच्छा मत करो—यही सफलता का मूलमंत्र हैँ।
2. आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है… शरीर बदलता है, पर आत्मा अमर है।
3. जो होना है, वह होकर रहेगा। डर कर निष्क्रिय बैठना कायरता है।
4. मनुष्य अपने विश्वास से बनता है—जैसा विश्वास, वैसा भविष्य।
5. सुख-दुख, जय-पराजय, लाभ-हानि को समान भाव से स्वीकार करो।
6. जो कर्म करने योग्य है, उसे डर या लोभ छोड़कर पूरी निष्ठा से करो।
7. इंद्रियों पर संयम रखो, क्योंकि असंयमित मन मनुष्य का शत्रु है।
8. ज्ञानी वह है जो हर प्राणी में एक ही परमात्मा को देखता है।
9. क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि नष्ट होती है।
10. धर्म के मार्ग पर अडिग रहो—यही मनुष्य का सर्वोच्च कर्तव्य है।
11. योग की शुरुआत है: कर्म में कुशलता और मन में शांति।
12. निष्काम कर्म करो—बिना स्वार्थ के सेवा ही सच्चा यज्ञ है।
13. जो सच्चे मन से मुझे समर्पित है, उसके सभी पाप धुल जाते हैं।
14. संदेह मन को कमज़ोर करता है… निर्णय लेकर आगे बढ़ो।
15. मोह त्यागो, क्योंकि मोह ही दुख का कारण है।
16. जो व्यक्ति अपने कर्तव्य से भागता है, वह जीवित होते हुए भी मृत है।
17. परिवर्तन प्रकृति का नियम है… बदलाव से डरो मत।
18. अहंकार सबसे बड़ा शत्रु है—विनम्रता में ही शक्ति है।
19. जो तुम्हारा है, वह तुम तक आएगा। व्यर्थ की चिंता छोड़ो।
20. मन को वश में करो, क्योंकि अनियंत्रित मन संकट लाता है।
21. सच्चा त्याग वह है जहाँ कर्म करते हुए भी मन आसक्ति से मुक्त हो।
22. ज्ञानी व्यक्ति सभी प्राणियों में समान भाव रखता है।
23. शांति और संयम से ही जीवन की हर लड़ाई जीती जा सकती है।
24. अपने स्वभाव के अनुसार कर्म करो—दूसरों की नकल मत करो।
25. भक्ति, ज्ञान और कर्म—तीनों मार्ग परमात्मा तक पहुँचाते हैं।
26. जो मनुष्य दुख में धैर्य और सुख में संयम रखता है, वही योगी है।
27. अज्ञानता के अंधकार को ज्ञान की ज्योति से मिटाओ।
28. ईर्ष्या और द्वेष छोड़ो… प्रेम और सहयोग से ही समाधान है।
29. मृत्यु से मत डरो—आत्मा अजर-अमर है, शरीर नश्वर है।
30. सच्चा धर्म वह है जो मनुष्य को मनुष्य से जोड़े।
31. जो सत्य के मार्ग पर चलता है, उसकी हार नहीं होती।
32. कर्म करो, परिणाम ईश्वर पर छोड़ो।
33. जीवन एक युद्ध है—डटकर लड़ो, पर नीति न छोड़ो।
34. जो दूसरों के लिए जीता है, वही सच्चा मानव है।
35. आत्म-नियंत्रण ही सभी सुखों की कुंजी है।
36. ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरु और शिष्य दोनों का शुद्ध मन होना चाहिए।
37. स्वार्थ त्यागो, सेवा करो—यही ईश्वर की सच्ची पूजा है।
38. कामनाएँ अनंत हैं… संतोष में ही सुख है।
39. जो व्यक्ति अपने कर्तव्य में लीन है, वही योग्य है।
40. अतीत को भूलो, भविष्य की चिंता छोड़ो—वर्तमान में जियो।
41. सच्चा बल वह है जो अहिंसा और धर्म की रक्षा करे।
42. ईश्वर सभी के हृदय में विराजमान हैं—उन्हें भीतर खोजो।
43. मन की शुद्धि ही सभी पवित्रताओं का आधार है।
44. जो तुम्हारे नियंत्रण में नहीं, उसकी चिंता व्यर्थ है।
45. सदैव धर्म का साथ दो—अधर्म चाहे कितना भी आकर्षक क्यों न लगे।
46. प्रेम, दया और क्षमा—ये तीनों ईश्वर के सबसे बड़े गुण हैं।
47. जीवन का उद्देश्य स्वयं को जानना और परमात्मा को पाना है।
48. अज्ञानी वह नहीं जो पढ़ा-लिखा नहीं, बल्कि जो अहंकारी है।
49. सभी कर्म ईश्वर को समर्पित करो—इसी में मुक्ति है।
50. जो सच्चे मन से मार्ग पर चलता है, ईश्वर उसका साथ नहीं छोड़ते।