क्या लिखूं उसकी झलक में…

क्या खूब लिखा है तेरी तारीफ में की…
तेरी इन मृग जैसी आंखों ने हमारे दिल को सताया है..
तेरे से बात करने की कहा इतनी हिम्मत थी बस इन आंखों के जाल ने ही तो हमें बुलाया है….
फिदा थे हम तेरी चाल देख कर इस चाल ने ही तो हमें तुम्हारा दीवाना बनाया है…
खाना पीना छूट गया था उस दिन से ही जिस दिन से तुम्हारे दिल पर मेरा दिल आया है…
क्या बोलूं मैं तेरे इस सुंदर मुख के बारे में जो उस दूर दिख रहे पूर्णिमा के चन्द्र के समान है..
ना तेरे गुस्से का डर है न तेरे रोक टॉक का एतराज है..हमें तो बस तुम्हे खोने का डर है…
बड़ी खुशी होती है जब आंख बंद करके तेरी छवि देखता हु… परन्तु बहुत दुख भी होता है जब वहीं छवि उदास देखता हु…
है भगवान इसकी जिंदगी को उन बगीचों में लगे फूलों की तरह बना दो जो कभी मुरझाए नहीं…
हम तो तेरी इस फिदा पर मरते है जब तेरी ये मुस्कुराहट उन फूलों की तरह सुंदर लगती है…हम जब आंखे बंद करके देख ले  तुम्हे तो हमारे जैसे एक ग़रीब के लिए तो तुम्हारी एक ज़लख भी मानो कोई अप्सरा के समान एक बड़ी हस्ती है..





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